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Thursday 16 July 2015





baasho ki tasweer 

"बाशो " मूर्तियाँ भी बनाता था और पेंटिंग भी करता था | रहस्यदर्शी था वो और कविताएँ  भी लिखता था पर सिर्फ “ हाइकू “| इन छोटी छोटी कविताओं में तमाम इल्म होता था और बड़ी नयी सी खुशबू , सारे फूलों की खुशबू मिलती है इनमें,  बस कोई खोजी होना चाहिए जो खोज पाये ..इस खुशबू की ज़बान समझ पाए | बोलचाल की भाषा में बोलेंगे तो कुछ सनकी पागल अलबेला बावरा मतवाला मस्त कलंदर जैसा .. लोगों के दिलो में उसके लिए बहुत प्यार था ...वो बहुत पहुंचा हुआ गुरु ..एक बहुत बड़ा ज़ेन गुरु ....
पूरे इस्लाम के रस को अगर एक प्याली में निकाल दे तो उसे सुफ़िस्म कह सकते हैं और बुद्धिज़्म के रस को ज़ेन  ...बाशो एक जेन गुरु था.. जापान का .. और ये कहानी उस दिन की है जब बाशो के गुरु चल बसे | बहुत भीड़ इकट्ठी हो गयी तब उनकी लाश पर , बहुत से लोग आ गए | आते ही जा रहे थें,  बस इसलिए की बाशो के गुरु थें वो जो ख़तम हुए थें और लोग बाशो को प्यार करते थें ..उन्हें तो आना ही था बाशो के सम्मान में उसके प्यार में | और तब हज़ारों लोगो ने बाशो को रोते हुए देखा वो बहुत रो रहा था फूट फूट  कर बच्चों की तरह .. औरतों की तरह .. बुरी तरह ..लोग हैरान होकर उसे देखते रहे बस देखते रहे |
तभी बाशो के शिष्यों ने कुछ सोचा होगा वे बाशो के एकदम करीब आकर धीमे से कहने लगे 

ये आप क्या कर रहे हैं और क्यों ?
आप इतना कैसे रो सकते हैं ? आप तो सब जानते हैं दुनिया के हर रहस्य को | एक प्रबुद्ध गुरु यूं नहीं रोया करते ..
क्यूकि आप भी जानते है कि उनका सिर्फ़ स्थूल शरीर ख़तम हुआ है पर सूक्ष्म शरीर आज भी है हमेशा रहेगा फिर भी आप रो रहे हैं ..ये लोग क्या सोचेंगे जो खुद सूख दुःख से ऊपर नहीं वो हमे क्या सिखाएगा ? आप हज़ारों करोड़ो के गुरु है , आप के गुरु को नहीं जानता , आप को सब जानते है  |
लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं .. आप पर आपकी ज़हिनियत पर सवाल खड़े हो रहे हैं ? अब बस भी करिए ...

बाशो ने बाएँ  हाथ से अपने अपने आसूँ पोंछे ..एक गहरी सांस लेकर  कहा ...” जिसको जो समझना है समझे और ये लोग क्यों बीच में आते हैं ये मेरी और मेरे गुरु के बीच की बात है | रोना या न रोना मेरे हाथ में नहीं  | अभिनय नहीं हो पायेगा मुझसे , मैं जो हूँ ..वो हूँ.. और वही दिखता हूँ ..और वही दिखाता हूँ  .. लोगो को देखकर तो तय नहीं करूँगा कि अब मुझे क्या करना है | गुरु थें वो मेरे सो तकलीफ़ मेरी कोई समझ न पायेगा .. इस जिगर का क्या करू जो फटा जा रहा रहा हैं | आत्मा अजर अमर है ये तो सब जानते हैं ..पर मै भी तो आत्मा के लिए नहीं रो रहा.. मैं तो उन गहरी गहरी आखों की याद करके रो रहा हूँ जिनमें मैं डूबा रहता था ...उनके हाथों को हाथों छू सकता था  .. उनके रूप को कभी देख नहीं पाऊंगा| मै तो बस अपने गुरु के शरीर के लिए रो रहा हूँ मुझे कोई परवाह नहीं कोई क्या समझता है ... और वो रोता रहा ......... बस रोता रहा ...



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