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Sunday 12 June 2016

तस्वीरें और उनकी बातें और एक सफ़रनामा ... ख़ुशी का ,प्रेम का ,हम्पी का ...


सफ़रनामा ....ख़ुशी का ,मोहब्बत का ,हम्पी का .........वैसे तो ये तस्वीर आख़िरी पड़ाव की है पर मेरी ख़ुशी को इससे बेहतर दूसरी कोई तस्वीर बयां नहीं करती ....इसलिए यहाँ सबसे पहले ..............

प्रेम का कुछ नशा ही ऐसा है कि इंसान  मजबूर बस  बहुत मजबूर हो जाता है , कृष्ण के मंदिरों में जाना न तो आदत थी मेरी न कोई इच्छा, मजबूरी बस मजबूरी थी ,और है, और रहे ऐसी मेरी प्रार्थना है  । फिर मथुरा वृन्दावन गोकुल ये सब जगह जाना हुआ , इस्कोन के मंदिरों में बहुत गाया  बहुत नाचा करताल मंजीरे सब बजाये बेसुध बेहोश होकर ,फिर लौटकर आने के बाद कृष्ण साहित्य पढ़ते रहे और  कृष्ण की ऊर्जा और प्रेम के साथ अपनी फ्रीक्वेंसी सेट करने में कुछ ऐसा खो गए कि कुछ भी  न लिख पाए, कुछ न कर पाए  ।

पर इस बार सफ़र के बाद एक अजीब सा ख़ालीपन उमड़ा है एक बेचनी .... । सफ़र की यादें दिन रात किसी साये की तरह उठते बैठते पीछे लगी है वो चेहरे वो दोस्त वो पेड़ वो नज़ारे बस ज़हेन की किसी सतह पर दिन रात बरसते रहते है।  मन में जो भी है वो बाहर आये और वैसे ही आये जिस रूप में वो है हृदय में तो जानूंगी कुछ हुआ ...
गुरु फिल्म का  गाना देखकर " बरसो रे मेघा बरसो "  मेरे इस साल का  सफ़र मुझे पिक्चर हॉल में ही दिखने लगा था  | कर्नाटक का सफ़र तय था इस बार पर पूरा कर्नाटक एक साथ घूमना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था इसलिए कुछ जंगलो  कुछ वादियों और हम्पी को हमने चुना और आगे बढे सफ़र पे ...
 लखनऊ से बैंगलोर फिर बैंगलोर में एक दिन रेस्ट करके अपने भाई के यहाँ भाभी और बहन का ढेर सारा प्यार पोटली में भरकर सीधा ऊटी की तरफ निकल गए थें ,ऊटी से एक रिश्ता भी मेरा वहां के आसमां से , कोई बीस साल पहले बड़े भैया गए थें ऊटी और लौटकर आने के बाद हफ्तों तक हमने वहाँ के आसमान की बातें सुनी थी कितना नीला कितना साफ़ बादल एकदम  परियों की तरह आते है वहाँ बरसते है चले जाते है , बस यही देखना था यही आसमान हमे भी और  बन्दीपुर के जंगले होते हुए हम निकले थें सुबह सुबह और ऊटी से भी सुन्दर ये रास्ता था जो ऊटी को ले जाता था , पूरे रस्ते आँखें नम बेवजह बस बहे जा रही थी ,ऊपरवाले की बनायीं इस दुनिया को देखकर मन पिघल रहा था गाडी से उतरकर गुल्ल्मोहर के उस  पेड़ को गले लगाने का दिल कर रहा था , आकाश में उड़ जाने को और जब ये सब कुछ न हो पाया तो आँखें बेवजह भरे जा रही थी , दिल चाह रहा था काश में उससे मिल पाती , उसको महसूस कर पाती और उस वक़्त जो गुज़र रहा था मुझपर वो बता पाती कि " ए ईश्वर ये कैसी दुनिया बना दी दिखा दी मुझे ये तो  कितनी ख़ूबसूरत है , ये रास्ता ये मौसम मै कभी नहीं भूलूँगी बस इसी सब का  धन्यवाद दे पाती उसके हाथों को चूम लेती उसके माथे को भी , गले लगा लेती उसको मिलकर बस इतना ही मन था  | बड़ी ईमानदारी और बड़े धन्यवाद के साथ घूमना पसंद है हमे | सबको नसीब नहीं होता है इसलिए उस तक शुक्रिया पहुँचाना सफ़र जितना ज़रूरी मेरे लिए |
गुलमोहर के बड़े बड़े पेड़ो को देखकर उनका रंग  जैसे रूह में उतरता जा रहा था और वो पूरा रास्ता बहुत कमजोर बहुत मजबूत दोनों एक साथ  करे जा रहा था खुद को संभाले हुए मै बस ऊटी के इंतज़ार में और  कुछ ही देर में हम लोग ऊटी पहुँच चुके थें| ऊटी तमिलनाडु का एक हिल स्टेशन  ...गाडी से उतरकर मै सचमुच बाहर आ गयी थी अपने अंदर की उस दुनिया से भी जहाँ दिल उससे मिलने को बेताब था पर एक पैगाम भी था मेरी बनायीं इस दुनिया के कण कण में हूँ मैं बाहर उतरकर देखो तो सब जगह हूँ मैं, मैं अब खुश थी बहुत खुश ...

  मगर हलकी बारिश रस्ते भर से साथ थी और यहाँ भी , कुछ चढ़कर जाना पड़ता है इस जगह चरों तरफ पहाड़ियां और बीच में आप ... शूटिंग  पॉइंट पर जाकर बच्चों को बहुत अच्छा लगा हम सबको को लगा ... हलकी बूंदा बांदी के बीच हमने ढेरो तस्वीरें निकाली .. इसका नाम ही शूटिंग पॉइंट था यहाँ अनगिनत फिल्मों की शूटिंग हो चुकी थी |
शूटिंग पॉइंट पर ...


कुछ वक़्त बिताने के बाद बोटैनिकल गार्डन हमारा अगला स्पॉट था उस दिन वहां फूलों का दिन था नुमाइश थी पूरा गार्डन सजा हुआ दुल्हन की सेज जैसा ...दुनियाँ भर से आये थें ये फूल , फूलों की जंग पहली बार देखी थी यहाँ ..हर फूल यहाँ खुद को बाकियों से बेहतर नहीं साबित कर रहा था , ऐसी कोई कोशिश नहीं थी उनकी बल्की वो सब एक जुटकर होकर हम सबसे कह रहे थें की "देखो न हम बेफिर होकर सबको खुशबू देते है और जब हम ये करते है हमे इसका पता भी नहीं  होता.. देखो न ,हम कभी झगड़ते नहीं कि कौन कितना सुन्दर किसकी कितनी  कीमत है बाज़ार में हमे इन बातों से क्या .. हम  अपने आप में बस अपने होने से खुश है फूलों की रौनक देखकर आखें एक बार फिर उसके सजदे में झुक गयी थी ..


गुलाब से बनी ये ट्रेन ...Add caption



 और अब अगले दिन ऊटी झील में नाव सवारी करके मैसूर के लिए निकलना था | पर सुबह जल्दी जागकर होटल के करीब वाली चाय की दूकान पर जाकर चाय का लुत्फ़ लिया था हमने अकेले ही और ऊटी सबसे ख़ूबसूरत तभी लगी हमे .. ऊटी मशहूर है चाय कॉफ़ी के लिए , चाय का रंग थोडा लाल था और ख़ुशबू भी अलग थी  | तीन cutting बस आखिर ऊटी आये ही थें चाय पीने ...
सागर झीले  तालाब बहुत करीब मेरे दिल को इसलिए नाव सवारी हर बार हर हाल में ज़रूरी .. नीचे पानी ऊपर आसमां मन को रोमांचित कर देता हर बार ...पर ये वो pykara lake नहीं थी ये शेहर के बीच एक छोटी सी लेक  बस ...खूब सवारी की एक डेढ़ घंटे फिर आगे अब मैसूर और वहा की शानो शौक़त ....
ऊटी लेक पर मैं ...

बैंगलोर से ऊटी चार घंटे का रन और अब ऊटी से मैसूर लगभग 150 km . कोई चार घंटे का रस्ता एक बार फिर और ऊटी में भी कई जगहें हमने नहीं देखी थी बहुत से स्पॉट कैंसिल कर दिए थें ... भाग भाग कर स्पॉट कवर कने में मज़ा किरकिरा हो जाता है , कुछ कम ही घुमते है पर उस जगह को पूरा जीते है और वैसे भी हम तो आये ही थें यहाँ का बस आसमां देखने और यहाँ  की लाल चाय पीने | चाय तो लाल ही मिली  पर आसमां अब प्रदुषण के चलते उतना नीला नहीं रहा ..गाड़ी चलती जा रही थी ड्राईवर के कन्नड़ होने की वजह से ज़्यादा बातचीत मुमकिन नहीं वो हर बात का जवाब " हां " ही देता था | मसलन " भैया मैसूर  चार घटे का ड्राइव है न " हा" भैया मैसूर आधे घंटे में आ जायेंगे न " हा" तो ऐसे में क्या बात करे कोई ..
उत्तरी भारत की तरह यहाँ जगह जगह ढाबे नहीं होते | कुछ मिल भी गया तो सिर्फ केले और कटहल वो भी पका , वहां के लोग बड़े चाव से खाते है इसे .. रस्ते मे आने वाले पेड़ो में हर चोथा पेड़ कटहल का और हर पेड़ पर कम से कम 50 से १०० कटहल ..
हम चलते चेले जा रहे थें तभी गाडी रस्ते में रूकती है और कुछ तमिलनाडु के लोग  हमसे मुदुमलाई जंगल घुमाने की बात करते है , पहले तो कुछ डरे लेकिन जंगल का लालच हमे कमज़ोर  कर रहा था फिर आस पास के लोगो से पता करके हम मंज़ूरी देते है और उनकी जंगल डीप सफारी के लिए तैयार हमसब ...और ये था ज़िन्दगी को हिला देने वाला सफ़र एक तो वीरप्पन का एरिया ओपर से तमिलियन ड्राईवर जो हालाकी बाद में दोस्त बन गया |  घने काले हरे जंगल और ये जंगल मशहूर है tigers और elephants के लिए , यहाँ असल में चार जंगलों का मिलन होता है  बन्दीपुर , मुदुमलाई सत्यमंगलम और ऊयांदे |ये लगभग ३२२ square km में फैला है | यहाँ सिल्वर ओक ट्रीज को देखा , बहुत शानदार और ख़ूबसूरत पेड़
ये नीलगिरी के पेड़ 

ये कूदती फांदती जीप हमारी 

शुद्ध हवा का मज़ा लेती मैं 
ये हिरन देखे थे ...Add caption
ये जंगल में गाडी रोककर कुछ रिस्क लेकर कुछ तस्वीरे निकाली 
पूरी सफारी हमने जीप में खड़े रहकर ही की नीलगिरी के पेड़ भी देखे और कई परिंदे भी .. राजेश जिसने हमारी जीप  चलायी शुरू में उसका  रंग रूप देखकर थोडा सा डर लगा पर बाद में पता चला वो तो बहुत खुश मिजाज़ बहुत daring और बोल्ड किस्म का इंसान , कुछ हिरनों का पीछा ऐसा करते करते हम जंगल के बीचोंबीच आ गए .. जीप फुल स्पीड में और  मोड़ में मैं  किसी स्टंट मैन की तरह जान बचाती मगर सफारी का मज़ा लेती .. जगह जगह झाड़ियाँ जीप को छीलती जा रही थी , मेरा खड़ा होना सच में खतरनाक जीप  अचानक गड्ढों में कूद जाती थी कभी यु ही बस एक ज़ोरदार मोड़ सबकुछ किसी फिल्म की तरह था  , यकीनन शानदार बहुत शानदार , राजेश को बहुत शुक्रिया किया कि  उसने इन हसीं जंगलों में इस तरह घुमाया किसतरह घुमाया कोई लफ्ज़ नहीं ...कोई ढाई घंटे की ये सफारी बहुत थ्रिल्लिंग और exciting  थी | जीप  जंगलो से निकलकर मेन रोड पर आ गयी और तमिल गाने पर बैठे बैठे खूब नाचे हम सब ... एकदम तमिलियन स्टाइल में  वहीँ के रंग में ...
ये राजेश है पर इसका नाम पूंछो तो थ्रिल्लिंग राजेश बताता है , सही बोलता है ये , इसीने सफारी करायी वो सच में थ्रिल्लिंग है 
मैसूर अब करीब था और जो सबसे पहले जो देखा वो था मैसूर महल ....
मैसूर महल मन एकदम खुश इसे देखकर उस ज़माने में कितनी कद्र थी शिल्पकारो की चित्रकारों की संगीत की तहज़ीब की कितना सुकून कितना धैर्य था , इसे देखकर लगा , इंडो-सारासेनिक, द्रविडियन, रोमन और ओरिएंटल शैली का वास्तुशिल्प देखने को मिला , कुछ देर को खुद को किसी बादशाह से कम न समझा ,  तीन तल्ले महल के निर्माण में सोने का एक गुम्बद भी है और चारो  तरफ तरह तरह के पेड़ , पर यहाँ महल के अंदर कैमरा की इजाज़त नहीं थी | कृष्णराजा wadiyar iv का हैं ये महल |  कहते है पहले पूरा चन्दन की लकड़ी से बना था पर किसी दुर्घटना के चलते दोबारा बनाना पड़ा  | इसके भीतर तमाम मंदिर भी है और कई पुरानी पेंटिंग्स जिनका हमे ज़्यादा इल्म नहीं पर वो बेशक नायब थी , वहां के आलिशान pillars बस देखते रहने को  दिल किया , एक तस्वीर भी ली छिपकर , बाद में पता चला जगह जगह कैमरे थें पर गुनाह हो चूका था मुझसे और बगैर किसी सजा मैं छिपकर बाहर आ गयी और वो बद्शाहियत जो छायी थी कुछ देर पहले तक उसका खुमार उतर गया | खुद्दारी और सच्चाई की कोई मिसाल नहीं इस दुनिया में मैंने महसूस किया तब| और उन रंग बिरंगी नक्काशी वाली दीवारों ने मेरे मन को फिर से रंग बिरंगा कर दिया ...
महल के बाहर एकतारा बेचने वाले एक सज्जन से दोस्ती की  उनके कई गाने सुने और बीन भी बजायी और तस्वीर भी खिचाई और ये अबतक का दिन भर का सबसे सुंदर वक़्त था ...सड़क पर बैठकर एक अनजान शहर में इतना अपनापन कसम से मज़ा आ गया | 
मैसूर पैलेस के बाहर सारा .Add caption

मैसूर के वृन्दावन गार्डन का बहुत नाम सुना था फूलों की इस दुनिया का ज़िक्र हम उन सबसे  सुनते आये थें जो भी मैसूर घूम कर जाते थें और नाम भी कितना सुन्दर वृन्दावन कृष्ण की याद दिलाता , न जाने की कोई वजह नहीं जबकि ये मैसूर से कोई २५ किलोमीटर दूर भी था शाम के वक़्त घोर ट्रैफिक से गुज़रते हम आखिर पहुंचे , मन में सोचा था आँखें बंद कर कुछ देर बैठेंगे पर वहां की पार्किंग देखकर इस गार्डन का नाम बदलने को दिल किया | इतनी भीड़ तो लखनऊ  के अमीनाबाद में भी नहीं होती | हमने कुछ नहीं देखा वहाँ ..फूलों का लुत्फ़ लेना तो दूर सांस लेना मुश्किल था | बड़ी जल्दी भागे हम वहां से ....

वृन्दावन गार्डन की पार्किंग का एक नज़ारा 
आज सुबह मैसूर ज़ू जाना था , बच्चों की फरमाइश पर , हिंदुस्तान का सबसे खास ज़ू ...हमे जो अच्छा लगा वो ये कि ये किसी जंगल की तरह है सभी जानवर हरियाली से लेस शायद अपने घर को ज़्यादा मिस न करते हो ..वो पशु पक्षी भी दिखे जो दीखते नहीं आमतौर पर ज़ू वगैरह में |
मैसूर ज़ू सारा और चिम्पांजी के साथ मैं भी 
.वापिस होटल आकर अब अगले दिन उस जगह जाना था जिसका नाम हम्पी है और ये इस सफ़र का सबसे लम्बा रन करीबन 9 घंटे गाडी में जगह बदलते इडली डोसा खाते विंड मिल के नज़ारे देखते , तरह तरह के पेड़ देखते (यहाँ कर्नाटक में पीपल को एक आदत है दूसरे पेड़ो को hug करने की | यहाँ बड़ा प्यार हैं हरियाली की कौम में | कई जगह दिखा पर ये पीपल ये तो बस  पीपल ही प्यार देना ही काम इसका धर्म इसका  | कभी आम के करीब ये कभी गुलमोहर के साथ ) 
यहाँ पीपल नीम को hug करता 


यहाँ बोगन वेलिया को Add caption
हम रात देर से अपने होटल पहुंचे | वहा सभी हमारा इंतज़ार कर रहे थें , होटल पहले से ही बुक था | होटल होसपेट में था जो हम्पी से कोई 8 किलोमीटर .. हम्पी आने वालो को होसपेट ही रुकना ही पड़ता है ... हम्पी मेरा सपना था जो अब बस एक रात दूरी पर सुबह उठते ही नहा धोकर हम हम्पी के लिए रवाना .. क्यूकि  ये जगह तमाम हिस्ट्री समेटे थी इसलिए गाइड लाज़मी था , सो पूरे दिन के लिए एक गाइड किया कोई ६०० रूपए में ..यहाँ कर्नाटक में आपको govt approved गाइड्स मिलते है , थोड़े से महँगे पर ठीक होते है 
और हम्पी हमे पहली नज़र में ही एकदम वैसा लगा जैसा सपने में सोचा था | जिस जगह भी हम घूमने जाने वाले होते उसकी दस्तक सपनो में कुछ दिन पहले से आने लगती है ... हम्पी मध्यकालीन हिन्दू राज्य विजयनगर की राजधानी था जो अब सिर्फ और सिर्फ खँडहर के रूप में मौजूद है  तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित यह नगर अब हम्पी (पम्पा से निकली हुई ) के नाम से जाना जाता है। इन्हें देखने  तमाम विदेशी हर साल आते है हिंदुस्तान के भी हर कोने से लोग इसका दीदार करने आते है | किसी समय में यहाँ एक समृद्धशाली सभ्यता निवास करती होगी। और ऐसा भी सुना है जैसा कि गाइड ने बताया कि ये दुनिया का सबसे अमीर साम्राज्य था | यह नगर यूनेस्को द्वारा विश्व के विरासत स्थलों की संख्या में शामिल किया गया है। घाटियों और टीलों के बीच अनगिनत चिन्ह जगह जगह पेंटिंग्स जगह जगह नक्काशी  हैं। इनमें मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष....  इमारतें हैं।बहुत कुछ मेरे बस से बाहर इस जगह का इतिहास ..
वो ( गाइड )हमे सबसे पहले विपुरक्षा मंदिर ले गया , जहाँ शिव जी ने सती  के बाद पाम्पा देवी से शादी की थी | यहीं हवन कुण्ड के किनारे सात फेरे लिए और पूरा विवाह संपन्न हुआ था | पाम्पा देवी का कुछ रिश्ता तुंगभद्रा नदी से भी है |और पाम्पा के नाम से  ही हम्पी आया | 
 पर मंदिर से पहले यहाँ लक्ष्मी का आशीर्वाद ज़रूरी मानते है और ये है भी मजेदार काम | लक्ष्मी एक हाथी  है पिछले कई सालो से यही मंदिर में रहती है | और लक्ष्मी से भी पहले हमने कुछ गजरे ख़रीदे इनसे जो विपुरक्षा मंदिर के सामने बैठती है अपने गजरे लेकर हर रोज़  ...
इनकी  ज़िंदगी बीती बस कुछ यूँ ...गजरे बनाते बेचते हुए 


 लक्ष्मी से आशीर्वाद लेती  हुई ...

हम्पी में विठाला मंदिर है जो सबसे  शानदार स्मारकों में से एक है। इसमें लगे ५६ स्तंभों को थपथपाने पर उनमें से संगीत लहरियाँ निकलती हैं।जिन्हें Britishers ने अपने ज़माने में तोडा भी ये जानने को कि आख़िर  ये आवाज़ आती कहाँ  से है 
जो britishers न कर पाए वो करने की कोशिश में हम ..Add caption
 हॉल के पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। जिसे चेरियट मोनुमेंट कहते है ।

जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे गरीब लोगों में बाँट दिया जाता था।और इस बाज़ार का नाम था पान सुपारी बाज़ार .. रानियों के लिए बने स्नानागार मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सजे  होते थे। इसके अलावा कमल महल और जनानखाना भी ऐसे आश्चयों में शामिल हैं।
लोटस मंदिर जिसकी मेहराब कमल की तरह खिलते है
 यहाँ हाथी-खाने के प्रवेश-द्वार और गुंबद मेहराबदार बने हुए हैं यहाँ पर महाराजा के सबसे बेहतरीन हाथी बांधे जाते थें |
१२ ft ऊंची एक पत्थर से निकली गणेश प्रतिमा
यही बांधे जाते थें बेशकीमती हाथी

ये शिव मंदिर जहाँ शिव ने शादी की और angels भी आये तब  ये दुर्लभ है ..

विपुरक्षा शिव मंदिर ..
उग्र नरसिम्हा ...
शिव के प्राचीन जलमग्न मंदिर जिनकी खुदाई अभी भी जारी है 
इनकी उमर ८५ साल ये फूल चुन रहे फिर जल भरेंगे फिर थोड़ी दूर पहाड़ी चढ़कर मंदिर जायेंगे और ऐसा ये रोज़ करते है Add caption
शाम होने को थी और अभी coracle बोटिंग के लिए एक चढ़ाई चढ़कर जाना था | पैर तो कबका बोल चुके थें पर इस दिल का क्या ये सब जगह होना चाहता है , ये सवारी तुंगभद्र नदी में की बाद में डैम भी देखा उसके लिए एक किलोमीटर चढ़ना और फिर उतरना , घूमना सच में जिगर का काम है इसीलिए हाथ पाँव चलते ऐसी जगहें पहले घूम लेनी चाहिए ...

coracle बोटिंग ..



बस यही तक थी ये यात्रा और कल सुबह वापिस बैंगलोर आकर जहाज़ पकड़ना था | मन कुछ दुखी भी था ये सब छूट जो रहा था पर जैसे मृत्य की तरह जन्म शाश्वत है वैसी ही वापिस तो लौटना  ही होता है घर  .....

सुबह बैग बैगेज के साथ नास्ता करके हम सब इनोवा के अंदर एक लम्बे सफ़र के लिए फिर तैयार बैंगलोर तक के लिए ...एक और चीज़ जो बता दूँ आपको कि घुमक्कड़ की ज़िन्दगी में थकने जैसा कोई लफ्ज़ नहीं होता , गर थकावट होती है तो घूमोगे कैसे भई ...नॉर्मली गाडी की लंबी लंबी यात्राओं में ही हम लोग सुस्ता लिया करते थें ...गाडी रफ़्तार से चलती हुई , नेशनल हाईवे संख्या जानने की जिज्ञासा वश गूगल किया तो पता चला जिस रस्ते पर हम है वहां से कुछ दूरी पर चित्रदुर्ग जिला है जिसमे हिंदुस्तान की शान यानी चित्रदुर्गा किला है | किला छोड़ना ज़रा मुश्किल था तो इन्हें मनाने की सब तरकीबे शुरू ...रजामंदी मिल भी गयी ज़्यादा परेशां हुए बगैर | तो ये जो सबसे आख़िरी में घूमा ये बोनस था शुद्ध बोनस ...कहते है हैदर अली इस पर  कई बार अटैक किया पर किला फ़तेह नहीं कर पाया फिर आखिर में कुछ सैनिको को मिलाकर उसने इसे जीत लिया था ....बाद ये टीपू सुलतान के पास था | ये भी विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा ...
पहाड़ी पर जो दिख रहा पीछे वो हिडिम्बा का मंदिर है Add caption

विशाल किला चित्रदुर्ग 
इस किले मेइअप्को कई जगह दिखेंगे ...

तस्वीरों से थाह लेना नामुमकिन इस किले की और इसकी चट्टानी दीवारों पर जगह जगह चित्र बने है इसी वजह से इसे चित्रदुर्ग किला कहते है | बहुत सोचने पर भी कुछ सूझा नहीं पर ...पर एक नाम जो दिया जा सकता है इसको वो है बब्बर शहर ....सच , किले तो पहले भी देखे राजस्थान में आगरा में पर ये था किलों का बाप एकदम रॉ फॉर्म में  ...ब्याज था ये सफ़र मूल से प्यारा तो होना ही था ......
प्रमोद जिन्होंने पूरा सफ़र कराया अपनी इनोवा  में बिठाकर सफ़र की आख़िरी तस्वीर भी ये



Thursday 16 July 2015





baasho ki tasweer 

"बाशो " मूर्तियाँ भी बनाता था और पेंटिंग भी करता था | रहस्यदर्शी था वो और कविताएँ  भी लिखता था पर सिर्फ “ हाइकू “| इन छोटी छोटी कविताओं में तमाम इल्म होता था और बड़ी नयी सी खुशबू , सारे फूलों की खुशबू मिलती है इनमें,  बस कोई खोजी होना चाहिए जो खोज पाये ..इस खुशबू की ज़बान समझ पाए | बोलचाल की भाषा में बोलेंगे तो कुछ सनकी पागल अलबेला बावरा मतवाला मस्त कलंदर जैसा .. लोगों के दिलो में उसके लिए बहुत प्यार था ...वो बहुत पहुंचा हुआ गुरु ..एक बहुत बड़ा ज़ेन गुरु ....
पूरे इस्लाम के रस को अगर एक प्याली में निकाल दे तो उसे सुफ़िस्म कह सकते हैं और बुद्धिज़्म के रस को ज़ेन  ...बाशो एक जेन गुरु था.. जापान का .. और ये कहानी उस दिन की है जब बाशो के गुरु चल बसे | बहुत भीड़ इकट्ठी हो गयी तब उनकी लाश पर , बहुत से लोग आ गए | आते ही जा रहे थें,  बस इसलिए की बाशो के गुरु थें वो जो ख़तम हुए थें और लोग बाशो को प्यार करते थें ..उन्हें तो आना ही था बाशो के सम्मान में उसके प्यार में | और तब हज़ारों लोगो ने बाशो को रोते हुए देखा वो बहुत रो रहा था फूट फूट  कर बच्चों की तरह .. औरतों की तरह .. बुरी तरह ..लोग हैरान होकर उसे देखते रहे बस देखते रहे |
तभी बाशो के शिष्यों ने कुछ सोचा होगा वे बाशो के एकदम करीब आकर धीमे से कहने लगे 

ये आप क्या कर रहे हैं और क्यों ?
आप इतना कैसे रो सकते हैं ? आप तो सब जानते हैं दुनिया के हर रहस्य को | एक प्रबुद्ध गुरु यूं नहीं रोया करते ..
क्यूकि आप भी जानते है कि उनका सिर्फ़ स्थूल शरीर ख़तम हुआ है पर सूक्ष्म शरीर आज भी है हमेशा रहेगा फिर भी आप रो रहे हैं ..ये लोग क्या सोचेंगे जो खुद सूख दुःख से ऊपर नहीं वो हमे क्या सिखाएगा ? आप हज़ारों करोड़ो के गुरु है , आप के गुरु को नहीं जानता , आप को सब जानते है  |
लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं .. आप पर आपकी ज़हिनियत पर सवाल खड़े हो रहे हैं ? अब बस भी करिए ...

बाशो ने बाएँ  हाथ से अपने अपने आसूँ पोंछे ..एक गहरी सांस लेकर  कहा ...” जिसको जो समझना है समझे और ये लोग क्यों बीच में आते हैं ये मेरी और मेरे गुरु के बीच की बात है | रोना या न रोना मेरे हाथ में नहीं  | अभिनय नहीं हो पायेगा मुझसे , मैं जो हूँ ..वो हूँ.. और वही दिखता हूँ ..और वही दिखाता हूँ  .. लोगो को देखकर तो तय नहीं करूँगा कि अब मुझे क्या करना है | गुरु थें वो मेरे सो तकलीफ़ मेरी कोई समझ न पायेगा .. इस जिगर का क्या करू जो फटा जा रहा रहा हैं | आत्मा अजर अमर है ये तो सब जानते हैं ..पर मै भी तो आत्मा के लिए नहीं रो रहा.. मैं तो उन गहरी गहरी आखों की याद करके रो रहा हूँ जिनमें मैं डूबा रहता था ...उनके हाथों को हाथों छू सकता था  .. उनके रूप को कभी देख नहीं पाऊंगा| मै तो बस अपने गुरु के शरीर के लिए रो रहा हूँ मुझे कोई परवाह नहीं कोई क्या समझता है ... और वो रोता रहा ......... बस रोता रहा ...



Sunday 28 June 2015

देवदार का जंगल ...




आज से कोई आठ साल पहले की बात हैं ...पहली बार जब देखा था इसे ... भूत चढ़ गया हो जैसे ख़ुशी का ..थ्रिल वाली ख़ुशी ..साया आ गया हो ..जैसे सवारी किसी की , दिल ने भीतर काम करने से इनकार कर दिया था ..वो तो बाहर निकल कर धड़क रहा था और पैर कांप रहे थें चलने में ... दिलो दिमाग का संतुलन खो बैठे थें ..विश्वास कैसे होता की ये मंदिर जिन्हें सच में देख रही हूँ ..इनको पहले कभी सपने में भी देखा है ..बिलकुल ऐसे ही थें ..डिट्टो ...मंदिरों की वो झलक कभी नहीं भूल पाएंगे इस जीवन में ...ख़ुशी से पांव लड़खड़ा गया था गिर भी गयी थी मंदिर की सीढ़ी पर उतरते हुए ..
जागेश्वर धाम  नैनीताल से कोई पचपन , साठ किलोमीटर है  | दो घंटे का रास्ता था बस | पर निकलने में ही देर हो गयी थीं नैनीताल से , सो पहुँचते पहुँचते शाम हो गयी | सर्दी की वो शाम,  सूरज भी जाने को था और मंदिर बस पहुंचे ही थें | शिव जी के ये मंदिर बहुत सारे है यहाँ कोई १०० या १५० होंगे , सब एक ही जगह पर आस पास .. छोटे छोटे पर एतिहासिक सब पुराने पत्थरों से बने ,  ASI की निगरानी में हैं अपना जागेश्वर धाम  | पहाड़ी इलाका और चट्टानों से घिरे शिव जी भी अँधेरे में बैठे थें | बिजली गुल थी उस वक़्त वहां , मंदिर के भीतर घनघोर अँधेरा बस एक दिया जो न जाने कितने सौ सालो से जल रहा था यहाँ  इस अँधेरे में  | भोलेनाथ के दर्शन करके बाहर आ गयी थी फिर  देवदार के दर्शन करने लगी  पर शाम ढलान पर थीं और बढ़ता अंधकार जो बार बार हमे वापिस आने का इशारा दे रहा था उस सकरे पहाड़ी रस्ते से होकर उसी शाम नैनीताल लौटना था पर देवदार के ये जंगल जो एकदम मंदिर के बगल हैं रोक लगा रहे थें |ना जाने क्यों पर वापिस आने का मन नहीं हो रहा था| मंदिर के दूसरी तरफ शमशान था वो भी  बहुत समय से ... और बीच में मंदिर और इस मंदिर से  चिपकी नदी “जटा गंगा”  बेवजह शोर करती बहती जा रही थीं ...अजीब सी बेचैनी हो रही थीं उसकी आवाज़ से ... कोई अनजाना खौफ़ ...थोड़ी देर में वो पुजारी बाहर आ गया जहाँ खड़ी थीं मैं  और उसकी वो बात जिसे आज तक नहीं भूले और न ही यकीन किया अब तक ... “क़ुदरत ऐसी नहीं होती “ मेरे मन ने कहा ...फिर भी ना जाने क्यों तुरंत ही चल पड़े थें वहां से  ....
“ ये देवदार के जंगल देख रहे हैं सबसे पुराना जंगल है ये देवदार के पेड़ो का ... रात में अगर कोई चिता ना जले शमशान में तो ये रात भर शोर करते हैं सोने नहीं देते फिर ....“


Sunday 14 June 2015

A journey to Ladakh ...

8 जून २०१५ सुबह 9 बजे हम सब गाड़ी में बैठ चुके थें वापिस आने के लिए ...आज से ठीक एक हफ़्ते पहले ये सफ़र शुरू किया था , पहली जून को ... मन दुखी था  अजीब सा लग रहा था ... पिछलें आठ दिनों से लदाख के ऊंची नीचे पहाड़ो में आठ आठ दस दस घंटे गुज़ारने के बाद इस थकावट और ठंड की आदत पड़ गयी थीं हमे | जिसे छोड़ना नहीं चाहते थें  जबकि सर्दी ने सबको चख्नाचूर कर दिया था | होटल से एयरपोर्ट का रास्ता सिर्फ़ आधे घंटे का था | ये बात और है कि वापिस आते वक़्त अपने घर की तस्वीर नज़रो के सामने घूम घूम कर आने लगी थी | बिस्तर, बाथरूम, घर का खाना, दोस्त  |  थकी तो गयी थीं  ...पर अभी और थकना चाहती थीं  ...पर बच्चों बहुत थके थें  |  और ये जो थोड़े से पल बचें थें उन्हें पूरा अपने भीतर खींचना चाहती थी कभी आँखें बंद करकें, कभी उस पतले से आँसू को पोंछकर जो सबसे छुपकर निकला था आँख के एक किनारे से , कभी गहरी लंबी सांसें लेकर.... डीप ब्रीथिंग बस डीप ब्रीथिंग करती जा रही थीं ...खुद को समझाते हुए अगली गर्मियों में इससें भी ज़्यादा ख़ूबसूरत जगह जाऊँगी ...पर कहाँ ? लदाख तो लदाख था बस ..लदाख की क्या बात !! अब जहाँ भी जाना होगा लदाख साथ ही जायेगा बेंचमार्क बनकर हमेशा .... या तो जगहें लदाख से कम अच्छी होगी या लदाख से बहुत कम अच्छी |


लदाख ने बहुत कुछ दिया था इन आठ दिनों में , बुद्ध को यहीं पहली बार करीब से जानने का मौका मिला था | बुद्ध यहीं से होकर गुज़रें थें और बौद्धों की चौथी धर्म संगीतिका भी यहीं हुई थी जिस्में बुद्धिज़्म की दो शाखाएँ निकली हीनयान और महायान | और जिस जगह को हम घूमने आये थें वो महायान शाखा का स्थान है शायद इसलिए ही यहाँ ज़्यादा मोहब्बत बसती है | इतना ही नहीं लदाख की हवा में जाने क्या तिलिस्म जो खींचता है अपनी तरफ और  इन सभी बातों का शुक्रिया अदा करना चाहती थी बल्कि करती भी जा रही थी | बीच बीच में जब भी  जितना भी वक़्त मिलता था, जहाँ कहीं भी ..कभी चलती गाडी में , पांगोंग झील के किनारे , चाय पीते वक़्त , कभी बस खालीपन में, रात में सोने से पहले... आँख बंद करके बस वही एक बात “ कि ऊपरवाले ये तूने मुझे कैसी दुनिया दिखा दी इस ज़िन्दगी में और तू क्या कहना चाहता है , ये नीली इंडस, ये श्योक नदी  , ये नुब्रा वैली , ये बर्फ़ से ढकें पहाड़ जो बस चुपचाप बर्फ़ ओढें खड़े रहते हैं बिना किसी उफ़ के , ये विलो के पेड़ जो कम पानी में जिंदा रहते हैं , सितारों से चमकता आसमान जो सिर्फ खुद को खुश करने के लिए चमकता है , ये सब कुछ सिखा रहे थें | धीरे धीरे बेहतर इंसान बना रहे थें और हाफ्ते हाफ्ते बनती भी जा रही या फिर बनना ज़रूर चाह रही थी | यही वजह भी हैं कि लदाख में रहने वाले लोग इतने अच्छे होते हैं | क़ुदरत के करीब रहते हुए ये इतने सिंपल नेचुरल और जेन्युइन...
पर हाफ़्ना बहुत ज़रुरी है यहाँ  , लदाख में,  ऑक्सीजन कम है तो ज़रा भी तेज़ कदम बढ़ाते ही दिल की ऐसी की तैसी हो जाती है और अब तो वापिस आकर अपने शहर में भी तेज़ चलने में डर लगता हैं |  शायद लदाख उन लोगो के लिए ही हैं जो बड़े पक्के वाले घुम्मकड़ टाइप होते हैं , ये खतरनाक साबित हो सकता है आराम पसंद टूरिस्टों के लिए |

यहाँ से गूगल पर मौसम का हालचाल लेकर ही गए थें , गूगल ने तो १६ डिग्री बोला था ये तो वहाँ  जाकर पता चला की १० डिग्री का हेरा फेरी है | तापमान ६ डिग्री था बस होटल पहुँच कर सबसे पहले ऊनी कपड़ों से लैस किया खुद को और  सबको | फिर बस थोड़ी देर बाद दास्तानों टोपो और मोज़ों की तलाश में पास वाली एक दुकान चले गए थें | जबकि पहला दिन यहाँ सिर्फ आराम किया जाता हैं ताकि बदले मौसम के मिजाज़ को समझ सके ये जिस्म और नाता जोड़ सकें इस high altitude से ख़ासतौर विमान से आने वाले लोगो को ज़्यादा मुश्किल का सामना करना  पड़ता हैं क्यूकि वो बहुत कम वक़्त में सफ़र पूरा करते हैं  ...पर अफ़सोस बाहर निकलना हमारी तो मजबूरी थी | दुकान जाना ही पड़ा ,  दुकानदार लद्दाखी था उसने बोला भी था “ ये वाली टोपी लीजिये मैडम इससे कान ढँक जायेंगे यहाँ ठंडी हवा बहुत ज़ोर चलती है याद रखिये आप इस वक़्त ११००० फिट की ऊँचाई पर हैं  “ पर हमें नहीं अच्छी लगी तात्याँ टोपे जैसी टोपी हमने ज़रा सिंपल  टोपी ली और सबसे दुःख की बात अगले दिन सुबह ही उसे बदल कर वही वाली लानी पड़ी जिसका डर था |

टोपी धारण  कर दूसरे दिन हम लोग सबसे पहले “थिकसे मोनास्ट्री” गए थें  | मोनास्ट्री को गोम्पा भी कहते हैं | थिकसे गोम्पा  थोड़ी सी चढ़ाई करके ही मिला था  और हाफ्ते हाफ्ते ऊपर पहुंचे थें | हमारे होटल से एक घंटे की दूरी पर थी ये मोनास्ट्री और रस्ते भर “ प्रेयर फ्लेग्स “ और स्तूपों ने तिब्त्तन बुद्धिज़्म की खुशबू बिखेर रखी थी | हमारे tour manager “ उर्ज्ञान “ ने बताया की ये रंग बिरंगे फ्लैग्स जिनपर गौतम बुद्ध की teachings लिखी होती है | इनको हम लोग कहीं पर भी लगा सकते हैं घरों के बाहर , पेड़ो में पहाड़ों पर कार में बाइक पर कहीं पर भी और हवा जब चलती है तो इन फ्लैग्स को छूते हुएँ वो बुद्ध की बातें उनकी सीख उनकी खुशबू को पूरी फ़िज़ा में फैला देती है | इनको तो बस देखने से ही मन शांत हो जाता हैं और इनका गहरा रिश्ता है  “बॉन धर्म परंपरा “ से जो शायद बुद्धिज़्म के भी पहले से हैं या उसे साथ ही गुथा हुआ हैं “| तिब्बतन बुद्धिज़्म से ये मेरी पहली मुलाकात थी | ये बुद्धिज़्म की महायान शाखा से जुड़ा हैं | जिसमें अकेले सफ़र नहीं करना होता बल्कि ये “नूह की कश्ती” है | सबके लिए जगह है सबको सैलाब के पार जाना है | मोहब्बत और प्यार से भरी ये बुद्धिज़्म की वो शाखा है जो सबको पनाह देते हुए चलती है | इसमें औरतो के लिए भी जगह हैं ये बौधिस्म की हीनयान शाखा से अलग हैं | यहीं वजह है लदाख की मोनास्ट्री में औरतें भी रहती है उनके रहने की जगह अलग होती हैं पर उन्हें अधिकार हैं |  भारत नेपाल चाइना भूटान मंगोलिया तिब्बत इन सभी देशों में इसको प्यार करने वाले बसते हैं | Dalai Lama को ये बुद्ध का अवतार उनका मैसेंजर मानते हैं |
थिकसे गोम्पा की एक झलक , ये फोटो बड़े दूर से ली थीं
इस मोनास्ट्री में कुछ मॉन्क्स भी दिखे थें और “FUTURE BUDDHA “की बहुत विशाल मूर्ति भी देखी | उर्ज्ञान ने बताया कि सभी बुद्धिस्ट भविष्य में आने वाले बुद्ध का इंतज़ार कर  रहे है | जैसे इस्लाम और क्रिश्चियनिटी Future Messiah का रास्ता देख रही हैं | सभी को ज़रूरत है किसी चमत्कार की जादू की | थिकसे गोम्पा को लिटिल लासा भी कहते हैं यहाँ के लोग  |  
Future Buddha जिनका लदाखी कर रहे हैं इंतज़ार
इसके बाद हम “शे पैलेस” चले गए थें | "थिकसे" से "शे" जाने वाले रस्ते पर अनगिनत स्तूप दिखे थें ये सभी सफ़ेद रंग के थें| हर स्तूप किसी ख्वाहिश को बयाँ करता हैं जैसे गाँव में महामारी से बचना हो या सूखा आ जाये तो बारिश के लिए या बाढ़ से निज़ात मिले और ऐसे स्तूप बनाने से पहले लामा से इजाजत ली जाती है | इन स्तुपो के अंदर बुद्ध से सम्बंधित कई चीज़े रखी रहती है | स्तूप की खास बात की इसमें कोई दरवाज़ा नहीं होता ..ये बंद होते हैं चारो तरफ से | शे पैलेस शे गोम्पा  में बुद्ध की जो मूर्ति देखि थी लगभग ४० फिट ऊंची और पूरी ताम्बे और सोने से लिपटी पड़ी थीं | लेह से पहले “शे “ राजधानी थीं लदाख की | “शे” से फिर हमे इंडस रिवर बैंक्स जाना था और ड्राईवर ने रस्ते में ही बता दिया था की सिंधू नदी में पानी कम होगा क्यूकि गर्मियां शुरू हो गयी हैं और वो सही था | वहां की गर्मियां ६ डिग्री तापमान की होती हैं | ये वहीँ जाकर पता चला था | लेकिन वो रास्ता बहुत ख़ूबसूरत बहुत ख़ूबसूरत एकदम वैसा ही जैसा हमलोग बचपन में सीनरी पेंट करते थें | कुछ पहाड़ एक सूरज बीच से निकलता हुआ एक नदी बहती कुछ पंछी उड़ते हुए कुछ पेड़ ...एक झोपड़ी भी और थोड़ी सी घास ...

सारा , (मेरी बिटिया ) सिंधू नदी के किनारे 

इसके बाद स्टॉक पैलेस जिसे स्टॉक गोम्पा या स्टॉक मोनास्ट्री भी कह सकते है | दरवाज़े पर शेर का बड़ा भारी  मुँह लकड़ी से बना हुआ लटका था | इस गोम्पा की सुरक्षा में सेवारत ये शहर के मुँह नकरात्मक एनर्जी से बचाते हैं  | इन्हें Lion Guard कहते हैं ये भी जगह जगह दीखते हैं लदाख में |

Lion गार्ड , लदाख में जगह जगह दीखते हैं ये
 म्यूजियम और लाइब्रेरी दोनों थें यहाँ स्टॉक पैलेस में | इसके अलावा भी बहुत किस्म की चीज़े जैसे yak की हड्डी के बने कलम , पुराने ज़ेवरात भारी भरकम ,  पुराने वाटर फ़िल्टर वो बड़ा दिलचस्प लगा हमे ...राजा और रानी के कपड़े , हालाँकि अब वहां राजशाही कुछ नहीं सब कुछ जम्मू एंड कश्मीर सरकार के हाथों में हैं |पर बच्चें मेरे अब थक गए थें चढ़ते चढ़ते सुबह से ...सो गाडी में ही बैठे रहे इस बार पिज़ा खाते रहे बस ...

स्टॉक पैलेस में देखा एंटीक वाटर फ़िल्टर

पर “शांति स्तूप” में हम सब गए थें एकदम गोल और शांत बुद्ध के सिर जैसा आखिर शांति किसे नहीं चाहिए .... बहुत ख़ूबसूरत बहुत शांत बहुत शानदार बहुत सफ़ेद है ये स्तूप बस शांत होने का दिल करता हैं यहाँ ...एक बार फिर बुद्ध के दर्शन .... और ये हमारा पहला दिन का एंड था जिसमें हमे लेह का लोकल sight seeing किया था | किसी भी तस्वीर में टोपी नहीं आने दी हमने लगभग 200 फोटो खींच चुके थें अबतक .....
शांति स्तूप
और अब कल यानी तीसरा दिन यानी pangong lake , dimox टेबलेट खाकर निकले थें सब , हाई altitudes में ये मेडिसिन हेल्प करती हैं और वैसै भी 160 kilometers जाना था लेह से.. पूरा पहाड़ी रास्ता और पहाड़ी भी कैसा कि दुनिया की तीसरी सबसे ऊंचीं रोड पर सफ़र तय करना था ये ... १३४ किलोमीटर लंबी झील कभी सपने में नहीं देखी  थीं आज आँखों से देखने वाले वाले थें पूरा रास्ता उसके इंतज़ार में बीत गया , मन रस्ते भर खुश था लदाख ऐसी जगह हैं जहाँ न चाहकर भी खुश होना ही पड़ता हैं | थके हुए भी खुश चढ़ाई करते हुए भी खुश ठंड में भी खुश हमेशा ही ख़ुश ....लदाख की सबसे ज़बरदस्त बात ये कि पूरा का पूरा रास्ता ही eye tonic हैं | मंजिल पर पहुँचने की कोई जल्दी नहीं कभी ...



 कुछ दूर चढ़कर ही Y फॉर yak भी दिखने लगे थें | yak एक बहुत ज़रूरी हिस्सा यहाँ का ..yak को पालने वालों को बहुत प्यार देते हैं लद्दाखी  , दहेज़ में भी दिए जाने वाले ये yak ,जिन जगहों पर थोड़ी भी घास पाते हैं चरने के लिए वहां पूरे दिन के लिए छोड़ दिए जाते हैं , इनके सींग पर “ॐ मणि पद्मे हुम “ लिखकर इन्हें धार्मिक जगहों पर भी रखते है कभी हरा कभी मैरून पेंट भी कर  दते हैं  ... yak बहुत करीब लदाखियों के दिलो के ... 

yak का सींघ ..




pangong के रस्ते पर मैं ...

लदाख में जगह जगह एक और चीज़ देखी वो ये कि एक बहुत लम्बे बांस को सीधा ज़मीन पर गाड़ देते है उसके चारो तरफ प्रेयर फ्लैग्स लगा देते है और सबसे ऊपर yak की पूँछ लटका दते हैं ,धार्मिक अनुष्ठानों में ये काम आता है| yak के बालों को कैंप बनाने में लगाते हैं , इसकी उन भी कीमती है और हड्डियों से तरह तरह के ज़ेवरात बनते हैं | yak के सिवा एक और जीव दिखा था तीन बार जिसे “मरमोट” कहते हैं ...

रास्ता चलता जा रहा था ... कई किलोमीटर तक चढ़ने के बाद फिर नीचे जाना था pangong के लिए पर वो चढ़ाई वाला रास्ता पूरा बर्फ़ीला था बीच में चांगला पास भी पड़ा था | आसमां एकदम नीला और दाए बाए बर्फ़ के पहाड़ , ये सब देखकर कोई फीलिंग्स ही नहीं बची थीं मुझ में| किसी बुत की तरह पत्थर की आंखों लिए देख रही  थीं और यकीन दिलाते हुए कि हाँ ,  ये कोई फिल्म नहीं चल रही है , ये मैं देख रही हूँ | और मैं जिंदा हूँ  ....
चांगला पास से आगे सिर्फ बर्फ़ ही बर्फ़ थी
सुबह के चले 2 बजे हमलोग pangong पहुँच गए थें ....ख़ूबसूरत बस खूबसूरत और कोई शब्द नहीं , कई बार देखा है पहले भी कि इस दुनियाँ की बहुत सी ख़ूबसूरत चीज़े खुद को बड़े ही रहस्मयी तरीके से किसी एकांत में पाल पोस रही होती हैं  .. वो इस कदर ख़ूबसूरत हो चुकी होती हैं कि उन्हें भीड़ से , तारीफ से,  कुछ फ़रक नहीं पड़ता कोई देखे कि न देखे ...वो तो खुश हैं बस अपने आप से अपने होने से अपने एकांत से ...pangong लेक भी ऐसी थीं ...बतख तैर रहे थें उस पर , sea gulls भी होते हैं यहाँ पर वो हमे दिखे नहीं | कहते हैं जिस दिन आसमान नीला होता हैं उस दिन लेक भी नीली हो जाती हैं और वो टूरिस्ट लकी होते जो नीली pangong देखते हैं पर हमारा तो bad luck था |  धूप जब पड़ती है तो इन्द्रधनुष के सभी रंग दिखते हैं  .... बहुत लंबी और एकदम भूरे भूरे पहाड़ों के बीच ...याक सफारी भी थीं यहाँ |

pangong lake

और आज यानी चौथा दिन ...हमे नुब्रा वैली जाना था खर्दुन्गला पास होकर , ये रास्ता कल से भी लम्बा था और ये दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची रोड


 ...नुब्रा वैली यानी फूलों की वादी लगभग १५० किलोमीटर लेह से ...पहले साउथ पुल्लू फिर खर्दुन्गला पास फिर वहाँ से नार्थ पुल्लू फिर खर्दुंग फिर खर्दुंग से खल्सर और खल्सर से सुमूर और सुमूर में देखने थें सैंड dunes ...

साउथ  पुल्लू से नार्थ पुल्लू तक का सफ़र बहुत कठिन | रोड नहीं बनी है बहुत ख़राब रास्ता और बर्फ़ पिघलकर नीचे आ जाती हैं जगह जगह गड्ढ़े है जिनपर पानी भरा है और यहाँ वहां बर्फ़ भी पड़ी हैं पूरा पहाड़ी रास्ता खतरों से भरा और रास्ते में एक गाडी को गिरते भी देखा था तो दिल ज़रा सा खौफज़दा भी था फिर ऊपरवाले के हाथों में जिंदगी की डोरी थमाकर बस आगे बढ़ गए थें | बर्फ़ से ढकें पहाड़  तो pangong के रस्ते पर भी देखे थें पर यहाँ बहुत ज़्यादा थें | खर्दुन्गला पास पर ज़ोर की बर्फ़ गिर रही थीं | इन आँखों से ऐसा नज़ारा पहली बार देखा था|


सुमूर तक पहुँचते हुए शाम हो गयी थीं फिर सबसे पहले हमलोग ”दिस्कित गोम्पा” गए थें यहाँ भी फ्यूचर बुद्ध की बहुत बड़ी मूर्ति खुले आसमां के नीचे देखीं थीं ..बहुत बड़ी थीं वो और बहुत अच्छी  जगह ...
दिस्कित गोम्पा ..

...फिर यहाँ से सुमूर के सैंड dunes देखने चले गए थें ...बर्फ़ के बीच सैंड dunes कुछ अजीब लगा सुनकर तो उर्ज्ञान ने बताया कि यहाँ बहुत पहले किसी समय नदी में बढ़ आ गयी थीं पानी सूख जाने के बाद से ये रेत आज भी यहीं हैं उड़ा करतीं हैं और सैंड dunes बनाती  रहती हैं | यहाँ की रेत एकदम सफ़ेद थीं  और सुमूर के रस्ते पर एक और चीज़ भी देखी  थीं एक बहुत विशाल मैदान जिसके बीच में एक पतली सी रोड और दोनों तरफ पत्थर ...अजीब सा ख़ालीपन था इस जगह पर वो सूर्यास्त का वक़्त था और अजीब सी बेचैनी हो रही थीं बस आँखें बंद करके बैठने का दिल था वहां पर जो संभव नहीं मेरे लिए  परिवार के साथ  | इस ख़ाली जगह को देखकर लगा कि शायद मेरी रूह यहीं आएगी सबसे पहले | इस जगह पर कुछ था जो रोक रहा था | कोई अनजाना खिचांव था | पता नहीं पर घूमते वक़्त अक्सर ऐसा लगता हैं कि घूमना बहुत ज़रूरी है घूमते घूमते कई बार आप खुद से मिलने लगते है खुद के ही कई रूप सामने आ जाते हैं | घूमना एक पवित्र अनुभव है|
सैंड dunes इस जगह पर odd man out की तरह थें .. बर्फ़ के बीच रेत के dunes | बच्चों को कैमल सफारी करायी थीं | यहाँ पर ये लोग अपना पारंपरिक डांस भी दिखाते हैं |
संज्ञा बड़ी  बेटी ..

यहाँ के कैमल्स के बाल बहुत कम होते हैं और इनमें डबल hunch था | एक और चीज़ जो करी वो ये कि लदाखी पारंपरिक परिधान में फोटो भी ली थीं | बेशक पुराना फैशन है पर आज भी है ये फैशन में ...

ये सब दिलचस्प था बहुत | ये सब करके हम अपने होटल चले गए थें जो एक  बहुत शांत जगह थीं |  यहाँ क़रीबन आधा किलोमीटर से भी लंबी "मानी " देखी थीं | मानी और स्तूप में एक बड़ा अंतर ये है कि मानी के कुछ रखते नहीं बस इसकी छत को पत्थरों से ढँक देते है और हर पत्थर पर बुद्ध की teachings .. "ॐ मणि पद्मे हुम " ये बहुत ख़ूबसूरत मन्त्र जिसमें प्रार्थना करने वाला खुद के दिल दिमाग रूह को बुद्ध जैसा बनाने की कामना करता हैं |जिसे संघ में सबके साथ गाते हैं | 
मानी की छत पर रखे पत्थर , बुद्ध मन्त्र के साथ



ये मानो होटल के किनारे बनी थीं ..हमारा होटल जहाँ बिजली सिर्फ तीन घंटे और टेलीफोन के सिग्नल बस शाम को दो घंटे आते थें सिर्फ बीएसएनएल का पोस्ट पेड और कुछ नहीं | मेरा फ़ोन तो पिछले एक हफ्ते से bed rest  पर था |
और यहाँ इस होटल में ऑस्ट्रेलिया का एक ग्रुप आया था कई लोग थें और इस ग्रुप में एक अकेला अमेरिकन “माइकल“ , उमर ६५ बरस , आँखों का रंग हरा , और प्रोफेशन से अनेस्थिटिस्ट और अब रिटायर्ड ..अब तक तीन बार लदाख आ चुके थें वजह पूँछ्ने पर बताया की उन्हें ये जगह बहुत शांत लगती हैं | अमेरिका में बहुत शोर हैं इसलिए वो यहाँ आना पसंद करते हैं | मेरे उनमें बीच में एक चीज़ कॉमन थीं ... “रूमी“ मतलब जलालुद्दीन मोह्हमद रूमी .. पर्शियन पोएट .. सूफ़ी देरवैश ..वो तो कोयना रूमी के शहर भी हो आये थें उनके tomb पर भी |  यहीं वजह थीं माइकल से बात बहुत लंबी चली थीं ...चलते चलते तक वो मेरे अच्छे दोस्त बन गए थें |

माइकल के साथ..
रात में डिनर करके बॉन फायर का इंतज़ाम था सबने गाने गायें पर सबसे अच्छा संज्ञा ने गया  | "जेन"  जो ऑस्ट्रेलिया से आई थीं अपने देश का फोक गीत गया था ... और रात में आसमान ऐसे चमक रहा था जैसे दुनिया के तारें यहीं जमा हो गए हो | अँधेरे में भी आसमान एकदम नीला दिख रहा था इतना साफ़ था वो कोई प्रदुषण कोई स्मोग़ नहीं ...ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार वाली पोएम याद आ रही थीं उन सितारों को देखकर | लेह आने से पहले किसी दोस्त ने बताया भी था कि नुब्रा जाकर वहां का आसमान ज़रूर देखना | वो बहुत अनोखा आसमां हैं चाहो तो घंटो बिता सकते हो इससे देखते देखते ...आसमान बहुत गज़ब यहाँ का दिन हो कि रात ...
सुबह मन बहुत खुश था रात में हलकी बारिश हुईं थीं और ब्रेकफास्ट के वापिस आना था लेह ...हम सब चल पड़े पर करीब ३० किलोमीटर आने के बाद पता चला रस्ते में लैंड स्लाइड हो गया हैं रात के बारिश की वजह से और आज रात फिर सुमूर में बितानी होगी | रस्ते में ही कहीं लंच करके हम वापिस आने लगा पर कुछ देर खर्दुंग गाँव में रुकने की सोची ..ये गाँव हाईवे पर था गाडी रोककर एक स्तूप के अगल बगल खड़े होकर तस्वीरें उतारने लगे | और बगल में एक घर था किसी गाँव वाले का घर के बाहर वही बांस वही प्रेयर फ्लैग्स और वही yak की पूँछ ...उत्सुकता वश दरवाज़ा खटखटाया और बहुत जल्द उस घर का मालिक बाहर आया ..ग्यालपो .. उसने बहुत कुछ बताया अपना घर भी दिखाया घर की तस्वीरे भी लेने दी और अपने घर में बनी एक छोटी सी मोनास्ट्री में भी ले गया |
ग्यालपो के पापा अपने घर की छोटी सी मोनास्ट्री में ...
वहां बुद्ध अपने कई अवतारों में मौजूद थें और दलाई लामा जी की एक बड़ी तस्वीर लगी थी  | बुद्ध की मूर्ति के सामने करीब ३० ३५ कटोरियों में पानी भरकर पूजा कर रहे थें ग्यालपो के पापा |शाम को ये कटोरियाँ खली कर देते थें सुबह को फिर पानी भरकर बुद्ध को अर्पित | ऐसी ही कटोरिया रस्ते के किसी होटल में भी देखी थीं पूजा घर वहां पर उसमें टॉफ़ी भरी राखी थीं |  और गोम्पा में भी ऐसा देखा था पहले कई जगह कई बार | ग्यालपो से बहुत सी बातें हुई उसने “स्तूप” “मानी” और “लातो “ में फ़रक भी बताया क्युकी ये तीनो चीज़े लदाख में जगह जगह दिखती हैं  | चलते वक़्त “छंग “ की एक बोतल भी दी थीं ..वहां की लोकल व्हीट बियर जो दुकानों पर नहीं मिलती जो हमेशा कोई लदाखी ही आपको गिफ्ट कर सकता हैं | तो अगर आप लदाख जाकर छंग पीकर आते हैं तो मतलब आपने लदाख में दोस्त भी बनाये |

ग्यालपो का सौ साल पुराना घर ...
छंग यहाँ की लोकल wheat  बियर 
और फिर थोड़ी देर बाद वापिस सुमूर जाना था , पहुँचते हुए रात हो गयी थीं | उसी होटल का वहीँ कमरा फिर एक बार रहने को मिला  ....पर इस बार वो बात कहाँ थीं हालाँकि हम लोग हर पल की ख़ूबसूरत बनाने की कोशिश कर रहे थें लेकिन तकलीफ़ इस बात की थी कि आज हमे लेह में होना था आज की शाम वहा की बाज़ार करनी थीं कुछ सौवनिएर लेने थें पर इस landslide ने सब बिगाड़ दिया था | और हर चीज़ अपने मन से कहाँ होती हैं ...ये लदाख हैं यहाँ सब क़ुदरत की चलती आईटीनरी  के हिसाब से कुछ नहीं होता | रात में जल्दी सो गए थें इस उम्मीद से कि खर्दुन्द्गला चेक पोस्ट जाने की इजाज़त देगा कल सुबह .. 
हमलोग के सामने कुछ लोगो की फ्लाइट मिस हो गयी थीं इस landslide के चलते और लेह पहुँचते ही अगले दिन हमे भी निकलना था अपने शहर लखनऊ के लिए ... सुबह सिर्फ़ अपने मन की चली कुछ मैगपाई चिड़ियों और पिंक एंड येलो वाइल्ड रोज़ेज़ की तस्वीरें उतारी और नास्ते में एप्रीकॉट जैम का मज़ा लेकर हम सब रवाना हो लिए थें | सफ़र लम्बा था और जगह लेह बेर की झाड़ देखने को मिली ये हलके बैगनी रंग की होती हैं | जगह जगह रुककर चाय कहवाँ खाना पीना खाते हुए शाम लेह में मिली | बच्चों को होटल छोड़कर हम इनके साथ लेह बाज़ार को चल पड़े ..
ये ऑटो या रिक्शावाला नहीं होते खुद ही चलना होता हैं हाफ्ते हाफ्ते | बाज़ार में कई जगह Bob Marley के पोस्टर्स भी दिखे फिर पूंछने पर पता चला कि यहाँ रस्ताफारी आते हैं और शहर में बॉब मारले का क्रेज हैं विदेशी टूरिस्ट के वजह से ...कुछ प्रेयर व्हील्स कुछ प्रेयर फ्लैग्स कुछ शंख और भी छुट पुट यादें लेकर वापिस अपने होटल में अगले दिन का इंतज़ार में ..ये इस ट्रिप की आख़िरी रात थीं लेह में ..होटल की खिड़की से लेह की फोर्ट रोड खूब जी भरकर देखा और बाज़ार के तमाम शोर शराबें को ज़हन में समा लिया ये सोचते हुए कि ये वक़्त ये होटल ये कमरा ये खिड़की ये नज़ारा दोबारा कभी नहीं मिलेगा और इससे हम लम्बे समय तक याद रखेंगे  ..... अपने शहर की गर्म उदासीन शामों को इस सर्द रात को याद कर उस शाम को ताज़ा कर लेगे ...और बुद्ध के "महायान" मतलब बहुत बड़े जहाज़ में बैठकर कहीं दूर बहुत दूर निकल जायेंगे .....